पिता सच्चाई सिखाते हैं
मासूम हाथों की नन्हीं उंगलियों को पकड़कर
नाजुक लड़खड़ाते कदमों को
चलना , दौड़ना सिखाते हैं
बच्चों को अपने कंधों पर बैठा
विविधता से भरी है यह जो दुनिया
अपने अनुभवों से बताते हैं
क्या होता है जिम्मेदार होना
कैसा हो जीवन का आईना
कभी अनदेखी चीजों का सच्चा होना
कभी – कभी देखी चीजों का झूठा होना
हर पहलू समझाते हैं
हार कर भी मन से कभी न हारना
अपने मेहनत को मान देना
अपने काम को सम्मान देना
जिंदगी का हर राज बताते हैं
पिता सच्चाई सिखाते हैं