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11 May 2022 · 1 min read

पिता श्री

गीतिका
***
(आधार छंद गीतिका- 2122 2122 2122 212)
समांत -अले, अपदांत
***
दिन बहुत बीते नहीं मिल पा सके मिल के गले ।
छत नहीं सिर पर रही थी आप जब काँधे चले ।।1
*
भोर भी रोने लगी थी साथ लेकर सिसकिया्ँ ।
बर्फ से अंदर कहीं हम टूटकर तिल-तिल गले ।।2
*
देखिये कैसे पसीना रंग लाया आपका ।
आप ही बस हो नहीं ये देख कर मनुआ जले।।3
*
आपने जो स्वप्न देखे हो गये साकार वे।
आपने चाहा उसी आकार. में हम हैं ढले ।।4
*
हर खुशी है पास में बस आप ही दिखते नहीं ।
याद है हमको पले थे आपकी छाया तले ।।5
*
है हमें ये गर्व मन में आपने जीवन दिया ।
किस तरह से जूझते हम आपके हाथों पले ।।6
*
गंध उर में उठ रही है याद की भीनी मधुर ।
शत नमन पितु आपको हैं आप थे भोले-भले ।।7
***
महेश जैन ‘ज्योति’,
6- बैंक कालोनी, महोली रोड़,
मथुरा-281001/मो० -9058160705
प्रस्तुत रचना मेरी अपनी‌ मौलिक कृति है ।
महेश जैन ‘ज्योति’

1 Like · 1 Comment · 242 Views
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