पिता रूप एक, स्वरूप अनेक
पिता एक शब्द मात्र नहीं है पिता एक असिमित भाव है
पिता एक सृजनकर्ता है पिता से ही नवीन जन्म का होता प्रादुर्भाव है
पिता एक अनुवांशिक गुण है पिता गुणसूत्रों में फैला हुआ बिखराव है
पिता एक महिला का सुहाग है पिता परिवार का आत्मिय लगाव है
पिता एक पथ प्रदर्शक है पिता के बिना जीवन में केवल भटकाव है
पिता एक युगधर्म है पिता सतत् ही निरंतर कर्म का स्वभाव है
पिता एक सेवा सुश्रुषा का ओज है पिता जीवन चक्र में एक पड़ाव है
पिता एक सर्वशक्तिमान का पूर्ण अंश है पिता आपदा में रक्षा कवच है बचाव है
पिता एक भाग्य निर्माता है पिता विमुख होकर घाव ही घाव है
पिता एक दृढ़ संकल्प है पिता बिना विकल्प का नैसर्गिक चुनाव है
पिता एक युग प्रणेता है पिता उत्तरदायित्व से भरा पटाव है
पिता शौर्य की गाथा है पिता उस परमपिता का असीम प्रभाव है
पिता एक नायक है पिता सदैव कष्टों की जलती हुई अलाव है
पिता होना इतना सरल नहीं मुख पर मुस्कान और हृदय में तनाव है
पिता ने पुत्र पर डाली जो तिर्यक दृष्टि तो समझो संकट में उसकी नाव है
पिता का करें अपार सम्मान हृदय से आप सभी को”आदित्य”का यही सुझाव है
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.