पिता या पिशाच
यह कैसा पिता है ,
जो अपने ही उपवन की कली पर ,
कुदृष्टि डालता है ?
ये पिता नहीं पिशाच है ,
जो अपनी ही संतान पुत्री को ,
खा जाता है ।
यह कैसा घोर कलयुग है ?
जहां एक परम विश्वसनीय संबंध भी ,
कलंकित हो गया।
ना जाने यह समाज को क्या हो गया?
हमारा हृदय विदीर्ण हो जाता है ,
प्रतिदिन समाचार पत्रों में यह समाचार पढ़कर ,
एक पिता ने अपनी पुत्री का ,
मान भंग किया ।
अपने ही खून पर ऐसा घिनौना कृत्य कोई ,
कैसे कर सकता है ?
वास्तव में यह मनुष्य नहीं मनुष्यता के नाम पर ,
एक पिता के नाम पर कलंक है ।
ऐसे दरिंदे को मनुष्य कहलाने का हक नहीं ।
यह तो धरती पर भारी बोझ है ।
ऐसे दानव को तत्क्षण मृत्यु दण्ड ही सर्वथा उचित दंड है ।