पिता पेड़ सी छाया देते
पिता पेड़ सी छाया देते
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जब कभी सोचती हूं मैं,
पेड़ सी छाया देकर,
पिता!ने हम सबको पाला।
उनकी छाया में हम शीतल होते,
फिर भी बच्चों से कोई,
प्रतिफल नहीं मांगते ।।
परवरिश उम्र भर हम बच्चों की
करते रहे ,
अपने साये में रखकर हम बच्चों की
देख भाल करते रहे ।
हम बच्चों को छांव देकर ,
निस्वार्थ भाव से खुद धूप में तपते।
बरसात हो या गर्मी, ठंड,
मेहनत वो दिन रात है करते ।।
मंहगाई के दौर में बच्चों को,
सारा सुख साधन है देते ।
अपनी खुशियां भूलकर ,
अपार पीड़ा सहते हैं—
फिर भी! पिता की भावनाओं को,
हम बच्चे नहीं समझते हैं!!!
लेकिन!वो खुश होकर सबको
आशीष देते हैं,
कहते नहीं कुछ भी बच्चों से–
सदा मौन वो रहते हैं!!!!
पिता पेड़ सी छाया देते——–
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कानपुर