पिता पुत्र और प्रेम
अर्ज किया और अर्ज करू मैं, राष्ट्र भक्ति है फर्ज कहूँ मैं।
मात पिता से प्रेम बाद मे, और राष्ट्र प्रेम है कर्ज कहूँ मैं।।
किया अर्ज और करू अर्ज मैं, तुम हो मेरे और मैं तुम्हारा।
भाई-बहन मे सबसे प्यारा, अनमोल रतन तू सबसे न्यारा।।
अर्ज किया और अर्ज करू मैं, ध्यान धरो तुम ध्यान धरू मैं।
करो कर्म तुम ऐसे हरदम, पाओ आशीष तुम सबका हरदम।।
पाओ ज्ञान और ध्वजा उठाकर, धर्म का अपने मान बठाकर।
नाम करो तुम अपने कुल का, दीप बनो तुम देश धर्म का।।
दादी बाबा की आँखो के तारे, अपनी माँ के लाड दुलारे।
माँ ये कहे बन श्रवण कुमार तू, मैं ये कहू बन परशुराम तू।।
बहन के अपनी हो तुम प्यारे, सीधे सच्चे सबसे न्यारे।
छोटे भाई के राम बनो तुम, भरत समान प्रेम करो तुम।।
भारद्वाज है गौत्र तुम्हारा, गौत्र का मान हो लक्ष्य तुम्हारा।
देश धर्म हो सबसे प्यारे, और इसके शत्रु लक्ष्य तुम्हारे।।
किया अर्ज और करू अर्ज मैं, ले आशीष और दू आशीष मैं।
संघ से लगाव बचपन से तेरा, सम्मान रखे तू मर्म का मेरा।।
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“ललकार भारद्वाज”