!! पिता – पिता होता है !!
जन्म देती है माँ
वो विधाता की देंन है
पिता भी तो उसी ऊपर
वाले की ही देन है
चाहे कुछ भी हो
पालता है सब को
अपने परिवार के पोषण
को हर दुःख सहन करता है
उस को सब सहन करना
पड़ता है चाहे कैसे भी करे
अपने तन पर न सजे कुछ
पर परिवार के लिए हर दम मरे
अपने परिवार की ख़ुशी को
तरसता रहता है उसका मन
घुट पीकर हर गम का खुद सबके
सामने हसता रहता है उसका मन
माँ बाप के लिए एक बेटा है
पत्नी के सर का ताज है वो
शिकायत तो सब को रहती है उससे
पर उस के मन की सम्न्झता रब है
पिता तो पिता ही होता है
हर जरूरत को पूरी करता है
बाजार जाना भी तभी सजता है
जब पिता का साया सर पर होता है
दुआ करता है “”करूणाकर””
हर घर में पिता का साथ रहे
बेशक खाने को मिले या न मिले
सब बच्चों के सर पिता का प्यार रहे !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ