पिता जैसा इंसान नहीं देखा
पिता जैसा इंसान नही देखा
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पिता जिसे मैने कभी परेशां नहीं देखा,
हमेशा ही उनको हमने मुस्कुराते देखा।
चाहे आंधी या भूचाल आए खड़े
हिमालय सा ।
पिता जैसा इंसान नहीं देखा——-
कभी अपनी फिक्र नहीं उनको,
सदा हमारे अरमानों को पूरा करते देखा ।
मां जागती तो वो भी जागे रातों को
हमारे लिए,
कभी उनको चैन से हमने सोते नहीं देखा ।
पिता जैसा इंसान नहीं देखा———
हर रिश्तों को खूब उन्होंने निभाया,
पर!सबको रूप बदलते हमने देखा।
कोई उनका साथ हर -पल न दें,
लेकिन उनको कर्तव्य निभाते
हमने देखा ।।
पिता जैसा इंसान नहीं देखा———
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कानपुर