पिता जीवन सौर में
पिता जीवन सौर में मेरी प्राणवायु थे तुम ।
उड़ सकूं उन्मुक्त नभ, यति-प्रज्ञ मन उपाय थे तुम ।
बालक्रीडा जब करूं, तत्पर धरा विस्तार थे तुम ।
द्वन्द में जीवन समर के, विजय-तूर्य चिरायु थे तुम ।
पिता जीवन सौर में मेरी प्राणवायु थे तुम ।
पिता कुछ छिद्रान्वेषक, हर जगह पर व्याप्त होते ।
डाह, निन्दा, बैर के वे, हर घड़ी बिषबीज बोते ।
पर तनिक विचलित न होे, सर्वहित सदा सहाई थे तुम ।
पिता जीवन सौर में मेरी प्राणवायु थे तुम ।
पिता शिक्षा-पुंज बनकर, आपने हर तम मिटाया ।
ज्ञान की महिमा बताकर, हर मनुज पढ़ना सिखाया ।
क्रोध का न लेश तुममें, प्रेम की शहनाई थे तुम ।
पिता जीवन सौर में मेरी प्राणवायु थे तुम ।
आनन्द बल्लभ
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
(मौलिक एवं अप्रकाशित)