पिता के नाम पत्र
परम पूज्य पिता श्री
सादर चरणस्पर्श
मैं कुशल हूँ , आप सकुशल, स्वस्थ व सानंद रहे इस बात के लिए नित्य प्रतिदिन बाबा विश्वनाथ जी के चरणों में नत्मस्तक हो करबद्ध प्रार्थना करता हूँ।
पापा आप से, समस्त परिजनों एवं गाँव से दूर रहते तकरीबन बीस बाईस वर्ष ब्यतीत हो चूके हैं। घर- परिवार के लिए ही मैं घर – परिवार से दूर इस व्यवसाय परक नगरी में रहने को उद्दत हुआ था, परन्तु तब मुझे यह नहीं लगा था कि यह दूरी हमें आप सबों के हृदय से भी दूर कर देगी। परिवारिक आवश्यकता के अनुसार हमने अपने कर्तव्य का निर्वहन करने का समयानुसार यथासंभव प्रयास किया एवं अब भी कर रहा हूँ, और आगे भी करता रहूंगा।
जो सामर्थ्य है उसके अनुसार मैं कभी भी अपने फर्ज से विमुख नही हुआ, फिर ऐसा क्या हो गया जो अपने ही पुत्र के प्रति आपका स्नेह कम होता चला गया।
पापा मैं आपसे कोई भी प्रश्न पुछ सकूँ खुद को इस लायक नहीं समझता, परन्तु आपसे स्नेहाशीष प्रात होता रहे यह अभिलाषा मन में सदैव पले रहता हूँ।
विशेष क्या लिखूं समझ नहीं पा रहा।
आज भी
आपका आज्ञाकारी पुत्र
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’