पिता की लाड़ली हूं मैं
पिता की लाड़ली हूं मैं
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नाजों से मुझको पाला,
समझा आंख का तारा।
सदा मुझे प्यार है देते,
मां पापा सारा !!!!
पिता की लाड़ली हूं मैं—
कभी आंखों से ओझल हो जाती,
घबरा जाते हैं सब लोग।
पिता का होता बुरा हाल,
मां भी विचलित हो जाती।
पिता की लाड़ली हूं मैं—-
मेरी नटखट शैतानियां देख ,
बहुत खुश है होते
पकड़ के मेरी उंगली को,
सिखाते हैं चलना पापा।।
पिता की लाड़ली हूं मैं—-
डग-मग डग-मग चलती हूं मैं,
गिरकर फिर उठती में
उठाकर गोद में मुझको,
बांहों का झूला झुलाते हैं पापा।।
पिता की लाड़ली हूं मैं—
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर