पिता की यादें….
पिता की यादें….
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जब जब आती मुझे पिता की याद !
बस घूट के रह जाता हूॅं मैं चुपचाप !
चाह के भी तो कुछ कर नहीं सकता !
बस सांत्वना देता हूॅं खुद को चुपचाप !!
अपनों को छोड़कर कोई क्यों चला जाता है,
इस यक्ष प्रश्न का जवाब नहीं मिल पाता है !
एक दोस्त की तरह ही पिता भी तो होते हैं ,
सर्वस्व त्याग कर वे भी मिट्टी में मिल जाते हैैं !!
पिता जीवन में कभी भी आराम नहीं करते ,
खुद के कष्ट को कभी वे प्रदर्शित नहीं करते !
बच्चों की खुशी में ही सदा खुद की खुशी ढूॅंढ़ते ,
परिवार की हरेक समस्या का समाधान वे करते !!
पिता अपना हरेक गुण बच्चों में देना चाहते ,
अंगुली पकड़कर सदैव चलना हमें सिखाते !
हरेक मोड़ पर उलझनों से जूझना हमें सिखाते ,
हमारे सुनहरे भविष्य की सदैव कामना वे करते !!
जब तक हमारे सर पे होता है पिता का हाथ ,
सारी मुसीबतों का सामना हम करते निर्बाध !
कोई जब यूॅं ही कुरेदता कभी हमारे जज़्बात ,
तुरंत ही बता देते हैं हम सब उसकी औकात !!
जब पिता होते थे, हम रहते थे सदा उनके साथ ,
कुछ न कुछ सीखने का हम करते थे उनसे प्रयास !
गुणों की खान थे वे, सदा देते थे हम सब का साथ ,
हॅंसते-हॅंसते वे भी कड़ी मेहनत करते थे दिन-रात !!
आज जब वे नहीं हैं, हर चीज़ में ही उन्हें ढूॅंढ़ता हूॅं !
याद कर करके अपने दु:खी मन को शांत करता हूॅं !
वे रहें या ना रहें , सदैव वे दुनिया में अमर ही रहेंगे !
सच तो यह है कि हर पल ही उन्हें महसूस करता हूॅं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : २०/०६/२०२१.
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