पिता की पीड़ा
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जीवन में आदमी- तभी खुश होता है।
जब उसे- पिता का पद प्राप्त होता है।।
और उस घड़ी तो, बहुत खुश होता है।
जब उसको, “पुत्र-धन” प्राप्त होता है।।
उसे बुढ़ापे का सहारा- मिल जाता है।
उसे वंश चलाने वाला- मिल जाता है।।
पिता- बच्चों के भविष्य की सोचता है।
बच्चें सक्षम बने- यहीं पिता सोचता है।।
पिता ने तो- अपना फर्ज निभाया है।
बच्चों को- जीने के लायक बनाया है।।
पर, ये कलयुग का समय चल रहा है।
इस युग में कुछ सही नहीं चल रहा है।।
पिता! वृद्ध होके भी काम कर रहा है।
और शिक्षित बेटा! आराम कर रहा है।।
बेटा- शिक्षित हो गया तो, क्या हुआ।
जीवन में उसके- आलस्य भरा हुआ।।
पुत्र- पिता की पीड़ा! कब समझेगा।
वो अपनी जिम्मेदारी! कब समझेगा।।
क्या पुत्र ने- अपना कर्तव्य निभाया.?
वृद्ध पिता को- काम से मुक्त कराया.??
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल=====
====*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*=======
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