पिता की छाँव
पिता की छवि मिलती नहीं कहीं,
निःस्वार्थ करता है पालन पोषण,
सजग रहता है अपने कर्तव्य पर,
आने नहीं देता बच्चों पर कोई आँच।
परिवार में एक छाँव-सा होता है,
जुड़ी होती है हर उम्मीद और विश्वास,
सख्त दिखने वाला पिता वह रूप है,
लुटा देता है जीवन ऐसा मर्म हृदय होता है।
खुद के कष्टों को दफ़न कर,
मुस्कुराता रहता है पिता वह वीर,
आँधी तूफ़ान-सी मुश्किलों को,
एक पिता ही गले लगाता है।
प्रहरी बन कर हर खतरों में,
सबसे आगे खड़ा नज़र आता है,
पिता ही है जो संसार में तुमको,
जीने की राह सिखाता है।
दिन-भर की कड़ी मेहनत से,
प्यासी धरती का बादल बन जाता है,
तृप्त करता है जिद और अरमानो को,
आँखों के अंदर आँसू भी छुपा लेता है।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उoप्रo) ।