‘पिता की छाँव’
घनी पेड़ की छाँव रूप सा,
जिसकी छाया में सब सुख पाते हैं।
है कौन बता तू ऐसा एक मानव ,
जिसमें सब संबल पाते हैं।
यतन हजारों है वो करता,
तुझ को न हो अभाव कोई।
टप-टप बहता बन लहू पसीना,
दिखता नहीं मुख पर दुःखभाव कोई।
सुख-वैभव भी कर देता अर्पण,
तेरा जीवन सुखी बनाने को।
पीड़ाएँ भी सह लेता हँसकर,
तेरे चेहरे पर खुशियाँ लाने को।
दो जोड़ी कपड़े में भी खुश रहता ,
तुझको हर फैशन के कपड़े देता।
खुश होता तुझे पढ़ा-लिखाकर,
आशीष सदा सफलता की देता।
तू है पगले अंश उसी का ही,
तेरा वो पिता कहलाता है,
हर संकट की बेला में बेटा,
तू छाँव उसी की पाता है।
जीवन में कुछ जब बन जाना,
भूले से भी उसको नहीं भुलाना।
सेवा श्रूषा में कमी न रखना,
आनंद के झूले में सदा झुलाना।