पिता का प्रेम
बहती प्रेम की धारा दुआ साथ है लाया ,
जन्मों का बंधन निःस्वार्थ है निभाया
वो ममता जैसी छांव पिता का हमने है पाया ।
रुक सी गयी ये संसार का मतलबी प्रेम मगर पिता प्रेम कभी रुक न पाया ,
तपाया खुद को आग की भट्ठी में मगर , बच्चे पे आंच न आने दिया ,
छिपाकर अपना आंसू जिसने बच्चों को बलवान बनाया ।
खून पसीना करके एक बच्चों का ख्वाब पूरा कराया
जिस मिट्टी में पाला हमें उसका मोल बताया
वही तो आखिर पिता कहलाया।
कभी किसान ,कभी बन गया मजदूर मगर, बच्चों से ऐसा कर्म कभी न करवाया
खुद को पहुंचाई कितनी चोटें , पर खरोंच बच्चे पे कभी आने न दिया।
धन्य है पिता जिसने ऐसा कर्म हमारे लिए किया ।
बहती प्रेम की धारा दुआ साथ है लाया
जन्मों का बंधन निःस्वार्थ है निभाया
वो ममता जैसी छांव पिता का हमने है पाया।
– प्रभा निराला