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19 Jun 2021 · 2 min read

पिता का प्यार ( पितृ दिवस पर विशेष)

पिता का प्यार मां से कम नहीं होता,
बस मां की तरह जाहिर नहीं करता है।

अपने गुलशन में नन्हा सा फूल खिले ,
ये चाहत माता संग पिता भी रखता है ।

माता शिशु जन्म के समय पीड़ा सहती है,
तो पिता भी अंतर्मन से पीड़ा से जुड़ता है।

नन्हे शिशु के पालन में अकेली मां ही नही ,
पिता भी अपना सम्पूर्ण सहयोग करता है।

बड़ी होती संतान के जीवन चर्या हेतु पिता ,
उसकी शिक्षा / विवाह हेतु धन जोड़ता है।

खुद की जरूरतें पूरी करने के अपेक्षा पिता,
संतान के जरूरतों को अधिक महत्व देता है ।

संतान गर हल्की सी भी अस्वस्थ हो जाए,
उत्तम से उत्तम चिकित्सा व्यवस्था करता है।

संतान पर कोई गर संकट आ जाए तो पिता ,
उसे दूर किए बिना चैन बिल्कुल नही लेता है।

जवान होती संतान कब तक घर न आ जाए ,
पिता भी अपनी नींद भुलाकर राह तकता है।

संतान जीवन में उससे जायदा तरक्की करे ,
यह भावना जगत में केवल पिता ही रखता है ।

संतान से आशाएं पिता की माता से कम नही ,
पिता भी तो भावनाओं से उनसे जुड़ा होता है ।

माता और पिता दोनो के ही रक्त से सिंची गई ,
संतान पर दोनो का सामान अधिकार होता है।

पुत्र / पुत्री के का विवाह धूम धाम से करवाना व्
उचित घर परिवार पाना पिता का अरमान होता है।

अपनी लाडली नाजों से पाली पुत्री की विदाई में,
समस्त परिजनों में पिता ही तो अधिक रोता है।

पिता भी अपनी संतान पर जान निसार करता है,
अतः पितृ मातृ भक्ति संतान का दायित्व होता है।

Language: Hindi
4 Likes · 6 Comments · 636 Views
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