पिता का पत्र
प्रिय पुत्र
इसमें कोई नयी बात नहीं है, जो मैं तुम्हें बताने जा रहा हुं। ये तो दुनिया में आम बात हो चुकी है, की लोग अपने पिता को वृद्ध आश्रम में छोड़ आते है।आज मेरी बारी भी आयी है, लेकिन ऐसा होगा मैंने सोचा नहीं था। तेरी वजह से, आज ये भी दिन देखने का अवसर मिला।
धन्यवाद।
जैसे तू मुझे यहाँ छोड़ने आया है, मुझे याद है की में भी कभी तुझे स्कूल छोड़ने जाया करता था, लेकिन वापस ले जाने की उम्मीद से। लेकिन कभी ऐसा नहीं था की मैं तुझे अकेला छोड़ दूँगा, जैसे आज तू मुझे छोड़ के जा रहा है। जब से तू पैदा हुआ, मेरे दो भगवान हो गए थे, लेकिन आज दोनों ने मुँह मोड़ लिया।
उसने विश्वास तोड़ा, तूने यहाँ लाके छोड़ दिया। मेरी हालत पे मुझे खुद तरस आता है, लेकिन मेरा दिल मानता नहीं है, दोनों के दोनों कमाल के हो..वो बोल नहीं पाता, तू सुनता नहीं है।
तेरी माँ को बड़ा गुमान था, की मेरा राजा बेटा राज कराएगा, बड़ा अफसर बनेगा एक दिन, दुनिया के चारों कोने घुमाएगा..लेकिन दुनिया के कोने तो दूर, घर के कोने को तरस गए है। दुनिया घूमने निकले थे, इस जेल में आके फँस गए है।
वक़्त का खेल देखो, पहले तेरे बारे में सोचने से फुर्सत नहीं मिलती थी
आज इतनी फुर्सत है की, तेरे बारे में ही सोचता रहता हुं, बदला कुछ नहीं है, वही के वही हाल है। पहले मुझे चिंता थी, अब बस सवाल है।
उस दिन घर में नया कुत्ता आया था, सब उसको प्यार दुलार रहे थे, बार बार उसके खाना खिला रहे थे, और मैं सुबह से इंतजार में था की कोई मुझे भी खाना खाने का पूछ ले।
मुझसे ज्यादा उसकी देखभाल है, मेरा पता नहीं उसका बहुत ख्याल है। मेरे सवाल पे तेरी माँ से लेकर ऊपर वाला तक मौन है, समझ नहीं आ रहा, असली जानवर कौन है।
खैर, वक़्त वक़्त की बात है, हम भी वक़्त में खो रहे है, पर एक बात याद रखना बेटा, तू भी बूढ़ा होगा, तेरे बच्चे भी बड़े हो रहे है।
सोचा नहीं था एक दिन ऐसा भी देखना पड़ेगा, इसलिए किसी से यारी नहीं की थी और यहाँ अच्छे से रह पाउ, इसलिए कोई तैयारी नहीं की थी। पर तू तैयार रहना, आश्रम आके हाल चल लेते रहना। क्योंकि वक़्त की मार सब पे पड़ेगी, और आज नहीं तो कल तुझ को भी यहाँ की जरुरत पड़ेगी।
अंत में यही कहूँगा, जहाँ भी रहे खुश रहना मेरा नहीं तो कम से कम, किसी को तो प्यार देना।
लाचार पिता।