पिता का दर्द
पिता का दर्द
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पिता के मुरझाय चेहरे पर,
चिंताओं की लकीरें हैं ।
दुखों को बांटकर अपने,
सुखों का संसार सजाए हैं।
भूलकर पुरानी यादों को,
बच्चों में खुशहाल हैं ।
बीत गए बचपन के दिन मेरे,
अब पचपन के होने आए हैं।
अपने पसीने से सींचकर बड़ा किया,
आज वही औलाद
मां,बाप को रूलाए है ।
बरगद के पेड़ सी छाया हमें देकर,
खुद को धूप की तपन में,
लोहा बन तपाया है !!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कानपुर