*पिता:एक याद*
एक फोन लगवा दो कोई परलोक-द्वार में ।
खो गयी कहीं बाबुल की आवाज संसार में ।।
तरसे कान सदा ही सुनने को मीठी बातें ।
निर्निमेष दृष्टि फोन ताके हर दिन हर रातें ।।
धरती से नभ तक कभी तार से तार मिला दो ।
बाबुल की आवाज सुना मेरा हृदय खिला दो ।।
ससुराल से पीहर जब-जब बजती फोन की धुन।
भाई,भावज,अम्मा की नेह भरी बातें सुन ।।
मन खोजे हो कर बैचेन पिता की बोली रे ।
कह दूँ तात अधूरी तुम बिन हर रंगोली रे।।
आठ बरस बीत गये कहाँ-कहाँ तुम्हें पुकारूँ।
नैना भी मेरे तरसे कैसे तुम्हें निहारूँ ।।
कोई तो जतन करो इस प्राविधिक संसार में ।
एक फोन लगवा दो कोई परलोक-द्वार में ।।
अनिता सुल्तानियाँ अग्रवाल
रायपुर (छत्तीसगढ़)