पिछले पन्ने 8
छुट्टी में या किसी विशेष अवसर पर हाॅस्टल से जब घर आते तो घर में पढ़ाई कम ही होती थी। हॉस्टल में रहने के कारण घर के लोग भी पढ़ने के लिए नहीं बोलते। उन्हें लगता था कि हॉस्टल भी तो बच्चों के लिए जेल की तरह ही है। घर आया है बच्चा,तो थोड़ा खुला में रहेगा और घूमेगा फिरेगा, तब ना बाद में दिमाग सही से काम करेगा। अरे पढ़ना तो है ही। कौन रोकता है ? हॉस्टल वापस जाएगा तो फिर से पढे़गा। घर में दो-चार दिन नहीं पढ़ने से एकदम कयामत नहीं आ जाएगी। घर के लोगों का इस तरह की सकारात्मक सोच के कारण घर में मजा ही मजा था। बाबूजी कहीं से सेकंड हैंड नेशनल पैनासोनिक का टेप रिकॉर्डर खरीद कर लाए थे। टेप रिकॉर्डर टाॅर्च में लगने वाली छोटी बैटरी पर चलता था। उस समय तो गाॅंव में बिजली होना भी, सच में किसी सपना से कम नहीं था। टेप रिकॉर्डर बजाने में दो घंटे में ही बैट्री जल जाती थी। उसमें गाना बजाने के लिए कैसेट लगाना पड़ता था। एक कैसेट लगा देते थे और दूसरे कैसेट में पेन फंसा कर गाना को आगे बढ़ाते। बैटरी के कारण कभी-कभी गाना पूरा नहीं सुन पाते। कैसेट घूमाने के चक्कर में कई बार कैसेट का रील टूट जाता और कैसेट की कहानी समाप्त। ऐसे समय में तो रोने का मन करता। शुरू-शुरू में कैसेट काफी महॅंगा मिलता था, लेकिन बाद में टी-सीरीज कंपनी का कैसेट आने पर कीमत में काफी कमी आई। बचाए गए पैसों से नई फिल्मों का कैसेट मॅंगवाना उस समय काफी आंनद देता था। इसके साथ ही उस समय रेडियो पर बिनाका गीत माला सुनना और बीबीसी न्यूज़ सुनना घर और समाज में एक अलग ही पहचान बनाता था। उस समय घर में रेडियो बजना और दरवाजे पर साईकिल खड़ा होना समाज में सुखी संपन्न होने का पक्का प्रमाण था। यहाॅं तक कि दहेज में घड़ी, साईकिल और रेडियो सबसे महत्वपूर्ण माॅंग मानी जाती थी। कभी-कभी तो लड़के वालों की ओर से इसकी माॅंग नहीं रहने के बाद भी समाज में अपनी इज्जत बढ़ाने की खातिर लड़की वाले स्वयं इसे खुशी से देते थे।