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19 Apr 2024 · 2 min read

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मिडिल स्कूल पास करने के बाद बगल के गाॅंव के हाई स्कूल में मेरा दाखिला करवा दिया गया था। वहाॅं हॉस्टल में रहना था। पहली बार घर से बाहर निकले थे। शुरू शुरू में हॉस्टल के अनुशासन में रहना बड़ा अखरता था। बाद में धीरे-धीरे आदत सी हो गई। स्कूल के हेड मास्टर जो अनुशासन प्रेमी और क्रोधी स्वभाव के थे। वे हॉस्टल में ही रहते थे। लड़कों द्वारा गलती करने पर यह नहीं देखते थे कि शरीर के किस भाग में मारने से क्या असर होगा ? जहाॅं मन होता था, वहीं बाॅस की पतली कर्ची से अपना हाथ साफ करते थे। इसी कारण से हॉस्टल में रहने वाले छात्रों में हर हमेशा भय व्याप्त रहता था। हॉस्टल की फीस समय पर नहीं जमा करने पर शाम में होने वाले प्रार्थना के बाद छात्रों की उपस्थिति लेने के समय यह बात छात्रों को बताते हुए अगले दिन से उसका खाना बंद कर दिया जाता था। शुरु-शुरु में यह बात अच्छी नहीं लगती थी,पर बाद में यही बात अच्छी लगने लगी थी। खाना बंद होने के बाद हम लोग यह कहकर हॉस्टल से जाते थे कि घर से चावल दाल और फीस के लिए रुपया लाना है,लेकिन घर जाने के बदले वहाॅं से किसी दोस्त के यहाॅं चले जाते थे और एक दो दिन वहाॅं चैन से रहते थे। कभी-कभी स्कूल के आगे वाली सड़क होकर गुजरने वाली बस से बगल के शहर अररिया चले जाते। उस समय अररिया में मात्र दस रुपया खर्च करने पर बस टिकट, होटल में खाना, मीरा या उमा टाॅकीज में फिल्म की टिकट और तपन पान भण्डार का एक गिलौरी खिल्ली मीठा पत्ता पान आराम से मिल जाता था। शाम वाली बस से पुन: हॉस्टल वापस आ जाते थे। हॉस्टल सुपरीटेंडेंट साहब से झूठ बोल कर खाना खुलवा लेते थे कि बाबूजी दो से तीन दिन में स्वयं हॉस्टल की फीस लेकर आएंगे। हॉस्टल में शिक्षकों के लिए विशेष खाना बनता था। यह बात कुछ छात्रों को पचती नहीं थी और वह इस चक्कर में रहते कि कैसे बन रहे विशेष खाना में किरोसीन तेल डाला जाए ? हद तो तब होती कि छात्रों द्वारा खाना में किरोसिन तेल डालने के बाद भी शिक्षक हल्की-फुल्की शिकायत के बाद वही खाना बड़े आराम से खा लेते। इससे तो छात्रों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुॅंच जाता और तब छात्र अपने इस मिशन को अपनी असफलता के रूप में देखते।

Language: Hindi
125 Views
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