पिंजरें में कैद परिंदा
सोने के पिंजरें में कैद परिंदा
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मानव को पंछी मानता है दरिंदा
सोने के पिंजरे में कैद परिंदा
हसरत खग की उड़ता ही जाऊँ
अवनि से अंबर तक घूम पाऊँ
मन की करना चाहता है परिंदा
सोने के पिंजरे में कैद परिंदा
कैदी को जैसे माया न लुभाती
पक्षी को याद आजादी आती
मरता रहता है होकर भी जिंदा
सोने के पिंजरे में कैद परिंदा
विहग नभ की ओर रहे निहारे
कब तक रहेंगे पिंजरे में बेचारे
यादों को बांधता रहता पुलिंदा
सोने के पिंजरे में कैद परिंदा
स्वादिष्ट व्यंजन ना मन भाए
काली रातों में नींद नहीं आए
मनसीरत किये पर है शर्मिंदा
सोने के पिंजरे में कैद परिंदा
मानव मन.को मानता दरिंदा
सोने के पिंजरें में कैद परिंदा
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)