पा
चली ससुराल , पा को रूलाया
याद कर , फोन भी मिलाया
छोटी थी , ठनका ठनकी भी
मुसीबत में पा को रोज हँसाया
पा बेटी का चेहरा रोज खिला
पा ने भी उम्र को बढ़ाया रोज
हरी -भरी बगियाँ सी हरी रहो
सुख की नींद सुलाया हर रोज
चली ससुराल , पा को रूलाया
याद कर , फोन भी मिलाया
छोटी थी , ठनका ठनकी भी
मुसीबत में पा को रोज हँसाया
पा बेटी का चेहरा रोज खिला
पा ने भी उम्र को बढ़ाया रोज
हरी -भरी बगियाँ सी हरी रहो
सुख की नींद सुलाया हर रोज