पास आकर कभी
आधार छंद वास्त्रग्विणी
मापिनी-212 212 212 212
पास आकर कभी बैठ जाया करो।
फासले इस तरह से मिटाया करो।
थाम कर हाथ मेरा घड़ी दो घड़ी,
बात मन की हमें भी बताया करो।
क्या बुरा है भला है हमें क्या पता,
बस नजर में हमें तुम बसाया करो।
हम अगर रूठ जाये मना लो हमें,
यूँ अहं में अकड़ कर न जाया करो।
बिन तुम्हारे जियेंगे नहीं हम सनम,
दूरियाँ इस तरह मत बढ़ाया करो।
बोल दो चंद मीठे वचन कर्ण में,
प्रेम दिल से हमेशा निभाया करो ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली