पाषाण हूँ
सदन शोभा बढ़ाऊँ
या राह में पड़ा रहूँ
मैं पाषाण हूँ ।
किसी मोल न आंका जाऊँ
मंदिर में रखा जाऊँ
देवता मैं कहलाऊँ
लोग मस्तक नवाए
फूल मुझे चढाए
मैं पाषाण हूँ ।
बस जगह का अन्तर
राह पड़ा ठोकर मार दी
मंदिर में शीश नवाया
भगवान मान कर पूजा
आस्था विश्वास जन का
कलाकार ने आकृति में ढाला
तूलिका से रंग डाला
पर मैं पाषाण हूँ ।