मन का वृन्दावन
प्रतिष्ठित हो –
मीरा के श्याम की तरह
मेरे मन के वृन्दावन में l
तुम्हारे आगमन की पदचाप
मोहित कर लेती है
मन – प्राणों को
मंदिर की घंटियों की तरह l
बज उठती है
साँझ की झाँझ
मन का सितार
आह्वान – आरती का संगीत l
गा उठता है कंठ मधुर
सु – स्वागतम का कोई गीत
पाकर सुपरिचित
मन का मीत l
और बिना जलाएं
अगर की बत्तीयां
फ़ैल जाती है सर्वत्र
गंध -सुगंध- इत्र l
भर जाता है
मेरा रीता मन
जीवन लगता है
जैसे नवनीत l
प्रतिष्ठित हो –
मीरा के श्याम की तरह
मन के वृन्दावन में.
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर