पावस की महिमा
तपन भरे इस जग को आकर घेरा जब काले मेघों ने |
पावस का स्वागत करने को उल्लास अनोखा फूट पड़ा |
चमकी दामिनि की एक लहर एक ज्योति पुंज सा फैल गया |
अपनी बहुरंगी आभा से वर्षा ऋतु ने श्रंगार किया |
पावस की पहली बारिश जल भर के ज्यों – ज्यों बरसी |
वह पहली बौछार धरा ने सारी की सारी सोखी |
सौंधी सौंधी गंध मटीली धरा रोम से फूट पड़ी |
मादक सी एक गंध उठी जो पुरवाई से फैल गयी |
वर्षा ऋतु का आकर्षण मन को आकर्शित करता है |
बारिश में जी भर भीगूँ मैं मन में भाव उमड़ता है |
टप – टप माथे पर बूँद पड़ी मेघों ने नम कर दिया मुझे |
मेरा भी तन -मन पुलकित हो वन मोरों सा झूमे नाचे |
हरियाली से पूर्ण धरा नव वधू सरीखी सज जाती |
हर्शित होता मेरा भी मन मैं भी दुल्हन सी सज जाती |
ताल तलइया भर जाते नाले भी सब नदियाँ लगते |
कागज की कश्तियाँ लिये नन्हें मुन्ने मिल तैराते |
सुखद सलोना सा बचपन वर्षा तुम याद दिलाती जब |
मैं बचपन में खो जाती कागज की नाव बनाती तब |
पल पल रूप बदलती धरती पावस की महिमा ऐसी |
बादल की कजरीली छइयाँ कहीं सुनहरी
धूप खिली |
©® मंजूषा श्रीवास्तव