पावस की प्रथम फुहार
पावस की प्रथम फुहार
पावस की प्रथम फुहार
छन छन कर धरणी के
तवे पर गिर रहा।
धरती के हृदय पे
फलतः फफोले तिर रहा।
ठीक वैसे ही,जैसे
विरहिणी के हृदय पर
प्रणयी के प्रथम पुचकार से
ममोले उठते हैं
बूंदे सुख गई
धरती में दरारें पड़ गई।
मानों,दो प्रेमीजनों के बीच
मिलन की करारे पड़ गई।
थोड़ी-सी बूंदे
वसुधा की प्यास बढ़ा गई
जैसे,नवपरिनिता को
प्रणयी के प्रथम पुचकारोपरांत, विछोह
उदास बना गई।
लेकिन आज
गगन के बादलों ने
वधु-वसुधा को दिया है
शायद,कुछ मौन संकेत।
पुलकित नज़र आ रहे हैं
सभी-ऊसर,चौरस, रेत।
बड़ी बेसब्री से कब्र का मज़ार भी
न जाने, कर रहा किसका इंतज़ार।
पावस की प्रथम फुहार।
-©नवल किशोर सिंह