पावस की छटा…!!
पावस की छटा ( मत्तगयंद सवैया = भगण X 7 +गुरु+गुरु )
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छाय रही घनघोर घटा, अरु दादुर कोयल गीत सुनाये।
श्यामल मेघ दिखे अति सुंदर देख किसान जिसे हरषाये।
मेघ घिरे चपला चमके, यह देख छटा भय भी भय खाये।
चातक बूंद लखे नभ से मन ही मन प्रीत करें सुख पाये।।
भींग गई वसुधा उर की, तन भीगत बूँद लुभाय रही है।
पावस की मदमस्त छटा,हिय अंग अनंग जगाय रही है।
सावन आय गयो सजनी, यह सोच रही मुसकाय रही है।
चाँद खिला मन आँगन में, बरसे बदरा हरषाय रही है।।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’