* पावन धरा *
** गीतिका **
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नमन पावन धरा को नित्य बारंबार करता हूं।
इसी हित मैं हृदय से व्यक्त निज आभार करता हूं।
यहां जन्मे यहां पर सांस लेकर जिन्दगी पाई।
इसी का ऋण चुकाना है यही स्वीकार करता हूं।
किसी से द्वेष करने की वजह कोई नहीं होती।
सभी के साथ मिलकर कष्ट बाधा पार करता हूं।
सफलता मिल नहीं सकती अकेले इस जमाने में।
सभी को साथ चलने के लिए तैयार करता हूं।
मिला करती कभी शूलों भरी पगडंडियां हमको।
कदम रुकते नहीं उत्साह का संचार करता हूं।
सभी ऋतुएं समय पर रंग अपना छोड़ जाती हैं।
खिले हर फूल सुन्दर से हमेशा प्यार करता हूं।
किसी का बोझ मिल कर बांटने से कम हुआ करता।
खुशी मन मुस्कुराकर ही सहन यह भार करता हूं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य (२१/०४/२०२४)