पालनहार
अस्सी बरस का पालनहार,
डंडे की टेक झुकी कमर की रेख,
कदम दो चार कदम,
अपने दम से बढ़ता जाए,
डोलत पद हिलता मस्तक,
नैनों के आगे मोतियाबिंद छा जाये,
धीमें स्वर से बड़बड़ करता,
कूट-कूट के भोजन है चबाए,
रूखी चमड़ी सूखी धमनी,
गाढ़ा खून पानी बन जाए,
सफेदी सिर पर ही मंडराये,
पालनहार उम्रभर अपनी,
अपनी चिंता किये बिगैर,
कर्तव्य जीवन का निभाता जाए,
दो-दो रोटी कमाता जाए,
अभी भी कई न सोचे,
बिठा बुढ़ापे में खाना खिलाये,
हाथ पकड़ के सहारा दे,
लाठी उसकी लकड़ी न हो,
सैय्या उसका मखमल का न हो,
धन की वर्षा मन में न हो,
आँखों के समीप उसका अपना हो,
बड़ी दुनिया में छोटा-सा सपना एक,
कांधे में लादे अंतिम हो,
यादें भी न ले विदाई दे,
जीवन में ही सुध-बुध दे,
पालनहार पालने को जी जाए।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।