पार्थगाथा
प्रातः हाथी सजे हुए थे,
घोड़े कुछ घबराए थे,,
मानो रणभूमि मध्य स्वयं यम,
कौतूहल करने आये थे।
रक्तपिपासी तलवारें,
गर्दन को देख रही थी,,
धरा रक्त पीने को,
माधव से आज्ञा मांगी रही थी।।
एक पक्ष में गुरु पिता,
संबंधी सारे थे,,
पक्ष दुसरे में कुछ,
समय से हारे थे।
शून्यमध्य हो रही गर्जना,
शेषनाग अब डोल रहे,,
अवनि डोल रही है अब,
पर्वत भी है कुछ बोल रहे।।
कुरुक्षेत्र का दृश्य देख,
अर्जुन की आंखें भर आयी,,
भाले चमक रहे शत्रु के,
रक्तपात को तलवारें भी चिल्लाई