“पारदर्शिता की अवहेलना”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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डिज़िटल युग का पदार्पण हो गया! हम द्रुत गति से सफलता के सभी आयामों को छूते चले गए ! मित्रता की परिभाषा बदल गयी ! सीमित परिधियों में मित्रता को बाँधने की चेष्टा धूमिल होती गयी ! उड़ते परिंदों की भाँति सम्पूर्ण क्षितिज को अपना घोषला बना लिया ! सरहद की दीवारें भी हमें रोक न सकीं ! ना भाषा अवरोधक बनी ना परिधान ,परिवेश ,रंगरूप और ना हमारी संस्कृति ही मित्रता के आड़े आयी ! सम्पूर्ण मित्रता सौरमंडल में परवर्तित हो गया!
नभ के चमकते तारे तो बन गए ! प्रकाश सभी तारों में विद्धमान है ! भटके हुए लोगों को राह दिखाते हैं ! परन्तु हम सौरमंडल में एक साथ रहते हुए भी एक दूसरे से कभी मिल नहीं पाते ! खगोलशास्त्री के प्रयत्नों से इन तारे और भौगोलिक पिंडों के ज्ञान को अर्जित किया जा सकता है पर यह बिडम्बना ही कहें कि पारदर्शिता के आभाव में हम अपने मित्रों को भी ना पहचान पाते हैं ! सब के सब फेसबुक के सौरमंडल में अनगिनत मित्र अहर्निश रहने के बावजूद भी एक दूसरे को सिर्फ निहारा ही करते हैं !
अनोखे संसार की रचना का ताना बाना बुनने की परिक्रिया होने लगी है ! एक तरफ अनजाने डगर पर निकल पड़े हैं ! सब के सब अपरचित फिर भी ललक है लोगों से जुड़ने की ! लोगों ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से अपने प्रोफाइल को “लॉक ” कर रखा है ! नयी संभावनाओं के साथ दुर्घटनाओं की आशंका भी बलवती होने लगी है ! फिर भी चैन कहाँ लोगों को ? मित्रता का अनुरोध मानो बुलेट ट्रैन की गति पकड़ ली हो ! मित्रता की बढ़ोतरी ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे सेना का कोई विशाल रेजिमेंट बनाने की कोई प्रतिस्पर्धा चल पड़ी हो ! ” लॉक प्रोफाइल अनुरोध ” अधिकांशतः ताश के पत्ते के महल के तरह प्रारंभ में प्रतीत होता है ! यहाँ भी पारदर्शिता के आभाव में ये ढ़हने लगता है !
बहुत प्रयासों के बावजूद भी पारदर्शिता वाली शीशा धुंधली नज़र आती है ! लॉक प्रोफाइल अनुरोध को स्वीकार करना बहुत जोखिम भरा काम होता है ! कभी -कभी ” नाम बड़े तो दर्शन छोटे मिलने की सम्भावना हो जाती है ! प्रत्येक व्यक्ति की अपनी -अपनी पसंद होती है ! यदि आप लेखक हैं तो अधिकांशतः लेखक से ही जुड़ेंगे ! आपकी हॉबी से मिलते -जुलते लोग ही आप से जुड़ेंगे ! लॉक प्रोफाइल के अनुरोध को स्वीकारना और बाद में विचारों का ना मिलना एक द्वन्द का श्रीगणेश हो जाता है ! आप उत्तरी ध्रुब के प्राणी हैं और हम दक्षिणी ध्रुब के ! भला चुंबकीय आकर्षण हो कैसे सकता है ? कोई लाख ढ़ाढ़स दे दे कि ” चलो भाई यह डिजिटल मित्रता है ! सामंजस्य बनाये रखो !”ये सारी बातें कहने के लिए है ,प्रायोगिक कथमपि संभव नहीं हो सकता !
यह बातें अकाट्य है कि अधूरी पारदर्शिता के परिणाम स्वरुप मित्रता की दीवार चटकने लगती है ! आखिर पारदर्शिता के नियमों को हम अनदेखी क्यों कर देते हैं ? कुछ कामयाब कदम को बढ़ाएंगे तो अपनी मित्रता को सुरक्षित रख पाएंगे ! अपने फेसबुक अकाउंट के प्रोफइल पन्नों पर अपनी जानकारी भलीभांति दें ! कोई भी कॉलम अधूरा ना छोड़ें ! अनुरोध स्वीकार करने के उपरांत आपस में पत्राचार मैसेंजर पर करें ! आपका परिचय अधूरा ना रहे ! आपकी रूचि ,आपका हॉबी ,खेल -कूद और एक्स्ट्रा -एक्टिविटी का उल्लेख होना चाहिए ! मैं यह मानता हूँ कि किसी को अपना परिचय छुपाना यथार्थ नहीं होता है ! मित्रता में पारदर्शिता का मोल अतुलनीय होता है और इसकी अवहेलना व्यक्तित्व को धूमिल बना देता है !
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
29.09.2024