पायल.की तरह
***** घुँघरू की तरह ******
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घुँघरू की तरह मैं बजता रहा
घुट घुट के जीवन में मरता रहा
किसी ने कभी मुझे समझा नही
दूसरों को सदा मैं समझता रहा
पग पग पर सदा ठोकरें खाई
बढ़ते कदम संग मैं गिरता रहा
हसीं हंसी सी घुँघरू की खनक
गैरों के लिए मैं खनकता रहा
जिन्दगी के हर मोड़ पर हैं मिले
मोड़ों पर मैं धोखे खाता रहा
पायल में घुँघरू खनकते सदा
राहों में नुपूर बन बजता रहा
फूल फुलवारी में महकते सदा
औरों के लिए मैं महकता रहा
बादल बरसे नहीँ गरजते रहे
मेघों की तरह मैं गरजता रहा
बूँद बूँद के लिए चातक तरसे
सुखविंद्र प्रेम हेतु तरसता रहा
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)