पाब्लो नेरुदा
पाब्लोनेरूदा के जीवन का आधा भाग राजनैतिक उठापटक में बीता तो आधा संघर्ष व अपनी कर्मठता के साथ न्याय करते हुये सृजनशीलता में। पाब्लो नेरूदा साहित्यिक नाम था असली नाम नेफ्ताली रिकार्दो रेइस बासोल्ता था। इनका जन्म मध्य चिली के छोटे से.शहर पराल में 12जुलाई सन् 1904 में हुआ था और 23सितम्बर 1973 को उनकी मृत्यु संदेहास्पद हालातों में हुई थी।
विकीपीडिया की माने तो स्वभावतः कवि होने के कारण उनकी कविताओं में विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं।जहाँ एक और उन्मत्त प्रेम की कवितायें लिखी तो दूसरी तरफ कड़ियल यथार्थ से ओतप्रोत सृजन।कुछ रचनाओं में राजनैतिक विचारधारा भी नज़र आती है। उनके काव्यमन का पता इसी बात से लगता है कि मात्र बीस साल की उम्र में उनका प्रथम काव्य संग्रह ट्वेंटी लव पोयम्स एंड द सॉंग ऑफ डिस्पेयर प्रकाशित हो गया था।
विश्वस्तरीय साहित्य शिखर पर उन्हें स्थापित करने में न केवल उनके लेखन का हाथ था अपितु बहुआयामी व्यक्तित्व की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कवि होने के साथ वह राजनेता व कूटनीतिज्ञ भी थे।उनका कदम उठता तो सामने रोमांच से भरी कोई सड़क ,कोई गली होती थी।
तत्कालीन तानाशाह चिली शासकों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के कारण इटली में जाकर शरण ली लेकिन प्रशासन के साथ आँख मिचौली वहाँ भी चलती रही।
1970 में चिली में पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी साम्यवादी सरकार सैलवाडॉर अलेंद्रे.ने बनाई और अपना सलाहकार पाब्लो को बनाया। 1971 में फ्रांसमें चिली का राजदूत नियुक्त किया गया।
इसी वर्ष पाब्लो को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था।
इस सब उठापटक के बीच उनकी विश्व प्रसिद्ध रचनाएँ माच्चुपिच्चु के शिखर और कैंटो के जनरल ने विश्व के कई प्रमुख कवियों का ध्यानाकर्षण किया।
सन् 1973 में चिली सैनिक जनरल ऑगस्टो पिनोचे ने अलेंद्रे सरकार का तख़्ता पलट किया ।इस कार्यवाही में अलेंद्रे की मौत हो गयी। अलेंद्रे के समर्थकों को भी सेना ने मौत के घाट उतारना शुरु किया। इस समय प्रोस्टेट कैंसर का इलाज ले रहे पाब्लो को जैसे ही इस नरसंहार का पता लगा वह अस्पताल से अपने घर वापास आ गये ।घर में बंद वह इस जनसंहार के खात्मे की प्रार्थना करते रहते थे।
इस बीच तकलीफ बढ़ने से उन्हें वापिस अस्पताल जाना पड़ा। वहाँ संदिग्ध गतिविधियों को देख यह घर वापिस आये और कुछ घंटों बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी।
पाब्लो को विश्वास था कि किसी अज्ञात पदार्थ को इंजेक्शन के रुप में उन्हे दिया गया था।अलेंद्रे की मौत केबाद वह अपने घर इस्लानेग्रा लौट आयेथे। बारह दिन बाद ही पाब्लो की भी मौत या कहें हत्या हो गयी।
सेना ने उनके घर को भी नहीं बख़्शा।तोड़ फोड़ के बीच पाब्लो के कुछ मित्र कर्फ्यू में भी उनका जनाजा लेकर निकले।कर्फ्यू के बावजूद हर सड़क के मोड़ पर आतंक व शोषण के खिलाफ लड़ने वाले इस सेनानी कवि के चाहने वाले क़ाफ़िले से जुड़ते गये ।फिजाँ में एक बार वही गीत समवेत स्वर में गूँजने लगा जो नेरुदा ने.इन लोगों के साथ मिलकर बहुत बार गाया था– एकजुट लोगों को कोई ताकत नहीं हरा सकती।
बाद में इस हत्या को हृदयगति रुकने के कारण हुई मौत कह कर प्रचारित कर हत्या को छिपा दिया गया।
इनकी तीन शादियाँ हुई थीं।पत्नियों के.नाम -/ 1-मारीज्केएंटोनिएटा हेगेनार वोगेलजांग (तिथि अज्ञात)
2-डेलिया डेल कैरिल
(एम.1943–1965)
3–माटिल्डे उरंतिया सेर्डा
(एम. 1965–1973)
इनके सृजन में शामिल थे एक ऐतिहासिक महाकाव्य,एक गद्य,आत्मकथा,राजनैतिक घोषणापत्र (खुले पत्र)बाकी काव्य संग्रह में सॉनेटसंग्रह ओ प्रिया।
उफरोक्त जानकारी का स्त्रोत विकीपीडिया से पाब्लो नेरुदा एक कैदी की खुली दुनियाँ (साहित्य संग्रह 22सितंबर,2008) के सौजन्य से।