“पाप-पुण्य “
पाप-पुण्य का लेखा-जोखा
प्राणी तेरा लिखा जाएगा।
कर्म भले या बुरे जो करेगा
दंड अवश्य ही तू पाएगा।
यही है वह कथन जो हम
आदिकाल से सुनते आए।
किन्तु जो विश्वास न करते
पाप कुंभ को भरते जाएं।
वही डरेगा पाप न करेगा
भले-बुरे का भेद जो समझा।
वह अधम तो जाने ही क्या
जो नित पाप कर्म में उलझा।
दुष्कर्मों का सत्कर्मों से जो नाता
वही है पाप-पुण्य के बीच की दूरी।
अरे संभल जा पापी अब तो
बुरे कर्म तेरी नहीं मजबूरी।
पाप-पुण्य हैं शब्द विपरीत
फिर भी सदा आते हैं साथ।
एक बुरा तो दूजा है अच्छा
अच्छे संग मिलाओ हाथ।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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