Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Oct 2022 · 5 min read

*पाप की गठरी (कहानी )*

पाप की गठरी (कहानी )
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
मुकंदी लाल एडवोकेट को कौन नहीं जानता ? अदालत में झूठ को सच और सच को झूठ ठहराने में उनका जवाब नहीं था । आज भी कुछ ऐसा ही हुआ । एक बड़े घर का बेटा बिगड़ा हुआ था । किसी मॉल में जाकर उसने एक दुकान पर रखे हुए सोने के नेकलेस पर हाथ साफ कर दिया था। दुकानदार ने शक के आधार पर तुरंत पुलिस को बुला लिया । कोतवाल ने आकर लड़के की तलाशी लेनी चाही मगर उस ने अपने पिता के रईस होने का दावा किया और कहा “अगर हम चाहें तो पूरी दुकान खरीद सकते हैं । हमारे पास इतना पैसा है ,हम एक मामूली सोने का हार चुरा कर क्या करेंगे ?” मगर कोतवाल तलाशी लेने पर अड़ गया। लड़के की एक न सुनी ।
निराश होकर लड़के ने अपने पिता को फोन किया । उधर से पिता ने कोतवाल से बात की -” कितना पैसा चाहिए ? आपके घर पहुंच जाएगा । बस तलाशी मत लीजिए।” कोतवाल ने वहीं सबके सामने लड़के के बाप को फोन पर जवाब दे दिया-” पुलिस को खरीदने की कोशिश न करें । हम बिकाऊ नहीं हैं।” निराश होकर लड़का और उसका पिता कुछ न कर सका । कोतवाल ने तलाशी ली और पाँच मिनट के अंदर चुराया गया नेकलेस लड़के के पास से बरामद कर दिया । इसके लिए उसे लड़के को मॉल के वाशरूम में अवश्य लेकर जाना पड़ा।
जेवर की बरामदगी के बाद मामला अदालत में पहुंचा । लड़के को जेल भेज दिया गया । इधर लड़का जेल पहुंचा ,उधर उसके पिता के घर में मातम छा गया । जेल से लड़के को छुड़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया गया । इसी क्रम में मुकंदी लाल एडवोकेट की मदद मांगी गई । पहले तो मुकंदी लाल एडवोकेट ने मना कर दिया। कहने लगे -“मेरे पास काम का बोझ बहुत ज्यादा है ..और फिर मेरे परिवार में विवाह समारोह भी निकट ही है।” लेकिन जब लड़के के पिता ने मोटी रकम का ऑफर दिया तो मुकंदी लाल के मुंह में पानी आ गया । उन्होंने मुकदमा लड़ने की हामी भर दी।
मुकंदी लाल ने निश्चित तारीख को अदालत में पहुंचकर एक ही बात कही-” “लड़के को जानबूझकर वाशरूम में जबरदस्ती ले जाया गया और कोतवाल ने बदनाम करने के लिए अपने पास से नेकलेस की झूठी बरामदगी दिखाई है । होना तो यह चाहिए कि एक सीधे-साधे सज्जन नौजवान का जीवन बर्बाद करने के जुर्म में कोतवाल को जेल की सलाखों के पीछे ले जाया जाना चाहिए । उसकी नौकरी छीन ली जानी चाहिए और इतना तगड़ा जुर्माना लगाया जाना चाहिए कि आगे से पुलिस का कोई भी अधिकारी अपने पद और शक्तियों का दुरुपयोग करने से पहले सौ बार सोचे तथा गलत काम करते हुए उसकी रूह कांप उठे ।”
कोतवाल ईमानदार था । बिना डरे उसने कहा ” मैंने कानून का पालन किया है । अगर कानून का पालन करना अपराध है तो मुझे सजा जरूर दी जाए ।”
मुकंदी लाल कानून के विशेषज्ञ थे। उन्होंने झूठ को सच साबित कर दिया । अब स्थिति यह थी कि बड़े बाप का बेटा तो छूट गया लेकिन कोतवाल साहब फँस गए। अदालत ने कहा ” कोतवाल पर मुकदमा चलाए जाने की मंजूरी दी जाती है ।”
फैसला सुनते ही विजेता की मुद्रा में मुकंदी लाल एडवोकेट अदालत के परिसर से बाहर आए । लड़के के छूटने पर उसके पिता ने बैंड-बाजे के साथ मिठाई बांटने और पूरे शहर की दावत करने का प्रबंध कर रखा था । देर रात तक पार्टी चलती रही । मुकंदी लाल बैग में नोट भरकर अपने घर लौटे और रुपयों को पलंग पर बिछाकर विचार करने लगे -“नोटों की इतनी गड्डियाँ मैंने आज तक किसी मुकदमे में प्राप्त नहीं की थीं।” उनके मन में अपनी योग्यता के प्रति अभिमान जाग उठा । सोचने लगे -“यह दिमाग का खेल है ,जिसकी बदौलत आज मैंने ढेरों रुपया कमाया ।”
सोचते सोचते रुपयों की गड्डियों पर ही मुकंदी लाल को नींद आ गई । नींद में उन्होंने सपना देखा कि वह कीलों से भरे हुए पलंग पर लेटे हुए हैं ,जिसकी नोकें उनके शरीर पर चुभ रही हैं । असह्य पीड़ा से मुकंदी लाल परेशान हो गए । उन्होंने बिस्तर से उठ कर भागने की कोशिश की ,लेकिन वह जितना बिस्तर से बाहर निकलने का प्रयत्न करते थे, बिस्तर उतना ही लंबाई-चौड़ाई में बढ़ता जा रहा था ।
अब मुकंदी लाल ने बिस्तर पर खड़े होकर दौड़ लगाने की शुरू की ,किंतु कोई परिणाम नहीं निकला । बिस्तर मानो खत्म ही नहीं हो रहा था । दौड़ते-दौड़ते मुकंदी लाल थक गए । उनके पैरों से खून निकलने लगा । नजर उठा कर देखा तो चारों तरफ कीलें ही कीलें थीं और बीच में वह बिल्कुल अकेले नंगे पैरों बिस्तर पर खड़े हुए थे। दर्द के कारण वह अकस्मात ढह गए और कीलों की चुभन उनके पूरे शरीर में फैलने लगी। जिस तरफ करवट बदलते हैं ,वहाँ चुभन पहले से आकर खड़ी हो जाती थी । मुकंदी लाल सोचने लगे -” अगर ऐसे ही कुछ देर मुझे और कीलों वाले बिस्तर पर रहना पड़ा तो मेरे प्राण जरूर निकल जाएंगे ।”
तभी उनकी नींद खुल गई। वह समझ गए ,जो कुछ मैंने देखा था वह सपना था। वास्तव में तो वह नोटों की गड्डियों के ऊपर लेटे हुए थे । स्वप्न की बात तो आई – गई हो गई लेकिन मुकंदी लाल कुछ सोच कर परेशान होने लगे । उनको लगा कि स्वप्न बेकार में नहीं आते हैं। उनका कोई न कोई अर्थ जरूर होता है । तभी उन्हें महसूस हुआ कि उनके भीतर से कोई कह रहा है -“मुकंदी लाल ! यह तुमने क्या किया । अपनी विद्या बेच दी , चंद पैसों के लिए तुमने अपने मस्तिष्क की शक्ति का दुरुपयोग किया है। एक ईमानदार कोतवाल को फँसा कर तुमने एक बड़े बाप के बिगड़े हुए बेटे को तो छुड़ा लिया लेकिन नर्क की सजा से तुम अपने आप को बचा पाओगे ? ”
मुकंदी लाल बड़े वकील थे । उन्होंने अपने भीतर की आवाज से कहा “कौन साबित कर सकता है कि मैंने पाप किया ?”
भीतर से आवाज आई “मैं परमात्मा के दरबार से बोल रहा हूं । यहाँ न तुम्हारे तर्क सुने जाएँगे और न कुछ पूछने की जरूरत होगी सब कुछ शीशे की तरह पारदर्शिता के साथ प्रष्ठों पर अंकित हो चुका है । तुम्हारी होशियारी किसी काम न आएगी ।” मुकंदी लाल समझ चुके थे कि ईश्वर के दरबार में होशियारी काम नहीं आती । वहाँ तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है । सच को झूठ में बदलना या झूठ को सच में बदलने की कला परमात्मा के दरबार में नहीं चलती ।
पसीना – पसीना हुए मुकंदी लाल ने उसी समय पलंग पर पड़ी हुई चादर पर बिखरे नोटों को गठरी बनाकर बाँधा और आरोपी लड़के के पिता के घर पहुंच गए। दरवाजा खटखटाया। लड़के के पिता बाहर आए । मुकंदी लाल को देखकर चौंक गए। मुकंदी लाल के कंधे पर गठरी रखी हुई थी।
उन्होंने उस गठरी को उस लड़के के पिता के हाथों में सौंप दिया और कहने लगे -” इस पाप की गठरी के बोझ को मैं ज्यादा समय तक नहीं उठा सकता । ईश्वर मुझे क्षमा करना ।”
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
163 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
करनी होगी जंग
करनी होगी जंग
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
2450.पूर्णिका
2450.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
Tea Lover Please Come 🍟☕️
Tea Lover Please Come 🍟☕️
Urmil Suman(श्री)
रमेशराज की तीन ग़ज़लें
रमेशराज की तीन ग़ज़लें
कवि रमेशराज
नया साल लेके आए
नया साल लेके आए
Dr fauzia Naseem shad
हवाओं का मिज़ाज जो पहले था वही रहा
हवाओं का मिज़ाज जो पहले था वही रहा
Maroof aalam
जीभ
जीभ
विजय कुमार अग्रवाल
⚜️गुरु और शिक्षक⚜️
⚜️गुरु और शिक्षक⚜️
SPK Sachin Lodhi
बाल दिवस विशेष- बाल कविता - डी के निवातिया
बाल दिवस विशेष- बाल कविता - डी के निवातिया
डी. के. निवातिया
কেণো তুমি অবহেলনা করো
কেণো তুমি অবহেলনা করো
DrLakshman Jha Parimal
जहाँ जिंदगी को सुकून मिले
जहाँ जिंदगी को सुकून मिले
Ranjeet kumar patre
कैसा क़हर है क़ुदरत
कैसा क़हर है क़ुदरत
Atul "Krishn"
क्या चाहती हूं मैं जिंदगी से
क्या चाहती हूं मैं जिंदगी से
Harminder Kaur
ईर्ष्या
ईर्ष्या
नूरफातिमा खातून नूरी
#सनातन_सत्य
#सनातन_सत्य
*Author प्रणय प्रभात*
💐प्रेम कौतुक-324💐
💐प्रेम कौतुक-324💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
1
1
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
Basant Bhagawan Roy
*फिर से जागे अग्रसेन का, अग्रोहा का सपना (मुक्तक)*
*फिर से जागे अग्रसेन का, अग्रोहा का सपना (मुक्तक)*
Ravi Prakash
आखिरी उम्मीद
आखिरी उम्मीद
Surya Barman
दोहा पंचक. . . क्रोध
दोहा पंचक. . . क्रोध
sushil sarna
"रंगमंच पर"
Dr. Kishan tandon kranti
कुछ बहुएँ ससुराल में
कुछ बहुएँ ससुराल में
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
Almost everyone regard this world as a battlefield and this
Almost everyone regard this world as a battlefield and this
Sukoon
हिंदुस्तानी है हम सारे
हिंदुस्तानी है हम सारे
Manjhii Masti
चंदा तुम मेरे घर आना
चंदा तुम मेरे घर आना
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
ख़्वाब सजाना नहीं है।
ख़्वाब सजाना नहीं है।
Anil "Aadarsh"
कभी अपनेे दर्दो-ग़म, कभी उनके दर्दो-ग़म-
कभी अपनेे दर्दो-ग़म, कभी उनके दर्दो-ग़म-
Shreedhar
" मेरे प्यारे बच्चे "
Dr Meenu Poonia
ना जाने क्यों तुम,
ना जाने क्यों तुम,
Dr. Man Mohan Krishna
Loading...