पापा होते अद्भुत
“पापा होते हैं अद्भुत ”
माँ का वात्सल्य
टपकता है टप-टप
परन्तु पिता का प्यार अदृश
मगर होता महसूस
रहता सदा
ठोस ढाल के भीतर
किन्तु नहीं माता से कम
यह वो झूला है सबल भुजाओं का
संसार में सबसे सुरक्षित है
जिसमें झूलता बालक।
रंग-रूप
न उसका प्यारा-सा
मगर प्यार गूढ़-गंभीर।
आवरण है उसका कठोर
हो न यदि ठोस धरातल उसका
तो कैसे रहे संतान सुरक्षित ?
सुदृढ़ तन-मन पिता का
द्वार तक आने के पूर्व ही
देता है परे धकेल
बुरी बलाओं के भीषण तूफ़ान
और खरोंचों की रगड़
अपने तन पर लेता है झेल
उस गुज़रते झंझावात के कंटकों की।
जो हर क्षण
रहा करता है तत्पर
झेलने को अपनी हथेलियों पर
आँसू उसकी अँखिंयों से निकलने से पहले
भावना नहीं वास्तविकता युक्त
खुरदुरा पिता का स्नेह
सिखा देता है
जो गिर-गिर कर संभलना
न ही रहम करता है
और न मरहम
समय की औषधि और अनुभव के उपचार से भर जाने देता है
जीवन के घाव
वाकिफ रहते हुए जिनके दर्द से
और पी जाता आंसू अंदर ही अंदर
औलाद के हितार्थ
क्या शब्द दे पाएगी कोई
संतान अपने जन्मदाता के नेह को
पिता तात जनक जन्मदाता
किसी भी नाम से पुकारो
किन्तु
है हृदय भीतर से एक माँ का ही
यह मेरा मानना है
क्योंकि मैंने इस माँ समान हृदय से
पाया है प्यार अपरिमित
पापा होते हैं अद्भुत।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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