पापा ही चुप कराते
पापा ही चुप कराते
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बचपन में, जब भी रोती,
पापा ही चुप कराते।
मेरे चुप न होने पर,
मां एक चांटा जड़ देती।
जब आकर के पापा ,
मुझको गले लगाते—
और सुनाते लोरी मुझको,
मेरा मन बहलाते।
भांति-भांति के खेल करके,
मुझको बहुत हंसाते।
बहुत प्यार से मुझको,
थपकी देकर सुलाते!!
मेरे पापा मुझको बहुत ही भाते,
बचपन में जब भी रोती
पापा ही चुप कराते!!!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर