पापा सठिया गए हैं
ठंढक सुप्रभात,
रात बेरुखी,
तपते दिवस,
बारिश में
स्कूल चले हम !
पर अब यह स्कूल
दिवास्वप्न है
कोविड के कारण !
स्कूल में जो खेलते
कागज की नाव-नाव….
उसके बनने की प्रक्रिया
जमाने की बात हो गयी है,
तब मोहल्ले में
बारिश का पानी पर
कागज की नौकायन होती
और उन पर सवार होते
मोहल्ले के बच्चे,
पर अब वे बच्चे
मोबाइल से इश्क़ कर बैठे हैं,
जिनमें इंद्रधनुष नहीं,
अपितु रुमानियत देखते हैं !
अगर हम कागजी नौकाविहार करें,
इस बारिशीसपाटे में-
तो यह देख बच्चे हँसते हैं
कि पापा को क्या हो गया ?
वे सठिया तो नहीं गए हैं !