पापा मैं आप सी नही हो पाऊंगी
आंसुओं के सैलाब जो बांध लेते हैं पलकों के किनारों से
डबडबाई आंखों को देख खुद को रोने से न रोक पाऊंगी मैं
पापा आप इतनी बहादुर नहीं हो पाऊंगी मैं ।
जिसने इस काबिल बनाया कि कुछ बोल सकूं
उन्हें शब्दों की कारीगरी का आईना नहीं दिखा पाऊंगी मैं पापा इतनी महान लेखिका नहीं बन पाऊंगी मैं ।
पापा की परी ,लाडली ,राजकुमारी ऐसे नामों से बुलाते हैं
प्रेम का अथाह सागर मन में दबा सख्त व्यवहार ना दिखा पाऊंगी मैं
पापा इतना स्नेह हृदय में न छुपा पाऊंगी मैं।
मेरी हर सफलता का आधार बन, शीर्ष पर पहुंचाते हैं
नींव की तरह अदृश्य रहते एहसान भी नहीं जताते हैं
जरा में अपनी बड़ाई करने वाली स्वयं को महत्वहीन न कह पाऊंगी मैं
पापा आप जितनी श्रेष्ठता नहीं ला पाऊंगी मैं।
अपनी हर इच्छाएं हमारे शौक पर निछावर कर देते हैं
सर पर हाथ रखकर हिम्मत की छत बना देते हैं
मैं हूं ना कहकर परेशानियों को रुला देते हैं
कभी जो थकने लगी बिन सहारे आपके कैसे उठ पाऊंगी मैं
पापा आप जितनी जीवट नहीं हो पाऊंगी मैं ।
एड़ियों को घिस कर अपनी हमारी हाथों की लकीरें चमकाते हैं
जिंदगी की धूप में तप कर हमारे ख्वाबों का महल बनाते हैं
जीवन जलाकर अपना दूसरो को प्रकाशित नहीं कर पाऊंगी मैं
पापा आप जितनी बलिदानी नहीं हो पाऊंगी मैं।