पापा मेरे दोस्त
पापा मेरे दोस्त
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उंगली पकड़ के तूने ,
चलना सिखाया था
गिर जाने पर तुमने ही
उठना सिखाया था।
जब भी कहीं ठोकर,
खाई है मेंने–
तुमने ही मुझको उठकर!
चलना सिखाया था।।
आज आपकी पापा ,
बहुत खलती है कमी।
साय की तरह मेरे रहते थे तुम साथ,
अब तो तरसते हैं,तुम्हारे ,
थामने को मेरे हाथ!!
जब कभी मां ने मुझे डांटा था,
तुमने ही मुझको बांहों में
झुलाया था —
मनाकर ,प्यार की थपकी ,
दे सुलाया था —
आंखों में न हो मेरे आंसु कभी,
करते थे सदा हंसाने कि बातें
तरह-तरह के खिलौने
लाते थे सभी!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर उ०प्र०