पापा! जरा बता देते मेरे खुशियों पीछे का राज….
पापा! मै क्या लिखूं
तुमसा अच्छा इस जग में….
शायद न मिले कोई
अम्बर सा तुम मूजपर…
छाय किए हर दम
अपने घुट घुट कर…
खुशी के अम्बर लाते
मै क्या जानूं ये खुशियां…
कितनी मेहनत से आती
रास्ते में तुम कुछ न खाते…
जब भी मैंने रोया है
अपने खुशियों को छिपा कर…
मेरी खुशियां खरीद के लाते
अब तो जिलो अपने खातिर…
चेहरे पे मुस्कान भरो
जरा सा हस के बतला दो…
मेरे खुशियां के पीछे राज
लेखक – कुंवर नितीश सिंह
(गाजीपुर)