पापा की सीख
“डेजी, कालेज जा ,तुझे सोशियोलॉजी की मैम ने बुलाया है।”कालेज से लौटी डेजी की बड़ी बहन मैसी ने बोला। वह थर्ड ईयर की स्टूडेंट थी और डेजी का पहला साल था।
“अभी..?अब तो कालेज की छुट्टी भी हो गयी ।कल मिल लूँगी।”डेजी ने बोला।आज वह कालेज नहीं गयी थी
“अभी कालेज खुला है ।स्टाफ इंतजार कर रहा होगा।”
“ऐसी क्या बात हुई जो अभी जाना है ?कल नहीं होगा क्या?”माँ ने पूछा
“मम्मी ,मुझे न मालुम। अब बुलाया है तो मैं क्या करूँ?किया होगा कुछ इसने..।”मैसी ने मुँह बनाया।
डेजी खुद न समझ पा रही थी कि क्या बात हुई।जाऊँ न जाऊँ ।ऊपर से मैसी का चिड़चिड़ाना। पता नहीं मैसी को उससे नफ़रत क्यों थी।जबकि उसकी हर डिमांड पूरी होती।पापा की इतनी लाड़ली थी कि पापा उसे रानी बिटिया बुलाते थे। बस उसके मुँह से फर्माइश निकले तो। दूसरी तरफ डेजी ।मुँह खोल कर अपने लिए कुछ माँगा ही नहीं।कभी माँग भी लिया तो झिडकी मिलती थी।
खैर ,मसला था कालेज जाने का।और बिना पापा की इजाजत के सँभव नहीं था।
डरते डरते फोन किया ,”पापा ,कालेज में मैम ने बुलाया है अभी।चली जाऊँ?”
“अभी ?क्यों ।कल जाओगी ही कालेज तब कर लेना बात ।और तुझे किसने खबर दी?”पापा की आवाज मे शक महसूस हुआ
“मैसी कालेज से लौटी है ,उसी ने कहा।”
“रानी से बात तो कराओ..।जरुर कुछ किया होगा तुमने।”
यह तो हर रोज का किस्सा था। कोई भी बात बिगड जाए उसी पर ठीकरा फूटता।
“पापा का फोन है बात कर लो।” कहकर डेजी वहाँ से चली गयी
न जाने क्या बात हुई पापा और मैसी में वही जाने ।पर हाँ मैसी ने यह जरुर कहा कि जाओ,पापा ने हाँ कर दी।
कालेज पहुँची तो देखा स्टाफ रूम में माधुरी मैम,आशा मैम,प्रेमलता मैम,आदर्श मैम सभी बैठीं थी।
“मे आई कम इन ।”
“अरे डेजी, आओ ।तुम्हारा ही इंतजार था।” प्रेमलता मैम बोली
“डेजी, जाओ बाई को बोल के आओ कि एक कप चाय और बढ़ा दे। ” वह कालेज के एक हिस्से में बनी छोटी सी रसोई की तरफ गयी।वहाँ कमला बाई चाय ,नाश्ते का इंतजाम रखती थी।उसे बोल कर डेजी वापिस आ गयी
“डेजी ,ये फार्म भर दो अभी ।आज लास्ट डेट है।”
“जी मैम ,काहे का फार्म है ये और मुझे क्यों भरना है?पापा से पूछना होगा पहले।”फार्म हाथ में लेते बोली वह
“पहले बैठ तो जा ।और साँस ले ले।इतना डर क्यों रही हो?”माधुरी मैम ने पूछा
“जी मैम, वो …।”डेजी को समझ न आया कि क्या कहे
“रिलेक्स..लो पानी पियो।”आशा मैम ने पानी का ग्लास बढ़ाया
“थैंक्स मैम ।पानी नहीं चाहिए।”
“सुनो, कालेज यूनियन के चुनाव होने जा रहे हैं यह तो जानती ही हो क्यों कि तुमने अपनी कक्षा से सी.आर पद के लिए फार्म भरा है।हम वो निरस्त कर रहे हैं ।”
“क्यों मैम,कोई गलती हुई?”वह रोआँसी हो गयी
“अरे पागल। तेरेफर्स्ट ईयर मेंस्टूडेंट ज्यादा हैं। सी आर पद के लिए तुम् दमदार कंडीडेंट हो हमारी जानकारी के अनुसार।अगर तुम अपनी कक्षा के स्टूडेंट्स का पूरा वोट कवर कर लो तो यूनियन अध्यक्ष तुम बन सकती हो। अभी जो कंडीडेंट है हम उसे नहीं चाहते वैसे भी वो पिछले दो बार से बनती आ रही है।”
डेजी को खुशी हुई कि चलो घर में जो भी हो ,घर के बाहर तो उसका भी मान है। थोड़ी देर सभी ने उसे समझाया तो उसने फार्म भर दिया।
घर पहुँची तो पापा ने पूछा ,”क्यों बुलाया था ?क्या कांड किया?मेरे पास शिकायत न आये ।”पापा की चढ़ी त्यौरी देख वो कुछ बोल न पाई।
“डेजी,तुमसे ही पूछ रहा हूँ कुछ?”उसे पापा की नाराजगी समझ न आई।
“कालेज यूनियन के चुनाव हो रहे हैं उसी के लिए बुलाया था ।आज फार्म भरने की अंतिम तारीख थी।”
“तुम तो ना कर आई हो न ?”समझ न आया पापा इंकार कर रहे हैं या पूछ रहे हैं।
“जी ,वो माधुरी मैम ने फार्म भरवा लिया है ।यूनियन प्रेसीडेंट पद हेतु।”डरते डरते उसने कहा
“जीत जाओगी ..।”
हमारी कक्षा के वोट तय करते हैं कौन जीतेगा।सबसे ज्यादा विद्यार्थी फर्स्ट ईयर में ही होते हैं।”
“हँ,.ठीक से तैयारी करो ।सबसे अच्छा व्यवहार रखो । नम्रता से बात करना ..।”डेजी भौचक्की रह गयी
दूसरे दिन सूचनापट पर उम्मीदवारों की लिस्ट लग गयी। सभी आश्चर्य में थे डेजी तो सी आर की उम्मीदवार थी और जीत पक्की थी अचानक दो साल की विनर और सीनियर के अपोजिट!!
वह चुप रही ।स्वभावानुसार सबसे अच्छे से बात करती रही। वोट की अपील करती रही। मात्र दस दिन थे हाथ में। अपोजिट की तैयारी पूरी थी पेम्पलेट ,बैनर आदि के साथ ।उसे अभी करनी थी।
चार दिन में रूझान उसके फेवर में हो गया ।स्टाफ भी संतुष्ट था और उसे आफिस बुला के बधाई भी दे चुका था।
अपोजिट इस अप्रत्याशित बदलाव से सकते में थी। पाँच दिन शेष थे। उसने बाहरी ताकत का सहारा लिया। बॉयज कालेज से कुछ दादा टाइप लड़के बुलवाये ।दो दिन तक कालेज आते जाते रास्ते में डेजी को धमकियाँ दी ।कि तुझे उठवा लेंगे । गलत कर देंगे।
डर के डेजी ने यह बात स्टाफ के सामने रखी। वह बात कर ही रही थी कि कुछ लोगों ने देख लिया और अपोजिट ने यह प्रचार करना शुरु कर दिया कि डेजी उसे बदनाम कर रही है कि हमने गुंडों से उसे धमकी दिलवाई है ।मेरे कैरेक्टर पर ऊँगली उठा रही है।
उधर डेजी के पापा के कुछ परिचितों ने पापा को टोका ,कि अपनी बिटिया को बोलो कि राजनीति उसके वश की नहीं ।अपना नाम वापिस ले ले ।…
पापा ने कहा ,अब हार हो या जीत ,डेजी नाम वापिस नहीं लेगी।हार गयी तो कुछ सीखेगी और जीत गयी तो कुछ बेहतर करेगी।
पहली बार पापा ने उसके लिए यह शब्द कहे।
रुझान अभी भी डेजी के फेवर में ही था और सभी आश्वस्त थे। आज आखिरी दिन था ।अपोजिट ने प्रिसिंपल से परमीशन लेकर अनायास परिचय मीटिंग रख दी। हर उम्मीदवार को अपनी बात कह कर वोट अपील करनी थी। स्टाफ को शंका हो गयी कि कुछ न कुछ चाल अवश्य है पर क्या ?
खैर परिचय शुरू हुआ। सबने अपना परिचय और उम्मीदवार हेतु अपनी बात कही। सबसे लास्ट में डेजी को बोलना था ।अचानक अपोजिट ने डेजी से कहा ,डेजी ,तुम बोलो पहले ।मुझे घबराहट हो रही है थोड़ी सी। “ठीक है ..
कह कर डेजी ने अपनी बात रखते हुये वोट अपील कर दी।
अपोजिट उठी ओर हैलो दोस्तों..कहते कहते फूट फूट कर रो पड़ी।पूरी सभा कक्ष में सन्नाटा छा गया। कुछ देर रोने के बाद बोली।कि आप सब जानते हैं मैं दो साल इस पद पर रह चुकी हूँ । इस बार मेरा कोई इरादा नहीं था।पर आप लोगों के साथ मेरा आखिरी साल है इसलिए आप सभी के कहने पर तैयार हो गयी। मेरी शादी भी पक्की हो चुकी है ।मुझे हार जीत की चिंता नहीं है।मेरी नज़र में तो डेजी ही इस पद योग्य है। मैं बहुत खुश.हूँ।पर चिंता यह है किअगर हार गयी तो ससुराल में ताने मिलेंगे कि मेरा व्यवहार ठीक न रहा होगा।
मित्रों मैंने डेजी के हाथ पाँव जोड़े ।उसे बताया भी समझाया भी कि दो साल हैं तब तुम चुनाव लड़ लेना।पर ये न मानी। और सच तो यह है कि इसे स्टाफ ने खड़ा किया। इसने मेरे पीछे कुछ लड़के भी लगवाये जो चार दिन से बराबर धमकी दे रहे हैं।हार कर मैंने आज नाम वापिस लेने की कोशिश की पर हो न सका ।क्यूँ कि कल वोटिंग हैं। आप सभी से हाथ जोड़ कर विनती है कि आप सभी डेजी को वोट दीजिए। नमस्ते ।”
और फिर चेयर पर यूँ बैठी जैसे जिस्म मे जान न बची हो।
आखिरी पत्ता खेल चुकी थी वह। उसके झूठ पर डेजी सन्न रह गयी।वह फटी आँखों से देखती रही।
घर जाकर पापा को आज का अपडेट देते हुये सब बताया .
“डेजी,निःसंदेह वह जीत गयी।फिर भी आखिर तक कोशिश जारी रखना। ”
जैसा कि सभी समझ चुके थे पासा पलट गया है ।डेजी चुनाव में हार गयी। अपोजिट ने उसका मज़ाक बनाया कि ऊँची उड़ान उड़ रही थी ।कम से कम सी आर रहती तो यूनियन में तो रहती। चली थी प्रेसीडेंट बनने। जीत के जुलूस में जबरन उसको खींच के ले गये ।
पर पापा की सीख यादगार बन गयी ।”लक्ष्मीबाई भी हार गयीं थी लेकिन नाम अमर कर गयी।”
मनोरमा जैन पाखी