***” पापा की याद में ‘***
।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।
*** पापा की याद में ***
माँ की महिमा की बखान तो हर कोई किया करता है लेकिन पापा के गुणों का बखान बिरले ही करते हैं।
सोनपरी के पिताजी स्वर्गीय श्री रतनलाल जी पुलिस विभाग में वरिष्ठ इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे। उनके पदस्थ पुलिस थाने के अंतर्गत 22 गाँव के लोगों में दबदबा कायम था सारे गांव के लोगों की किसी न किसी रूप से सहायता की थी इसकी वजह से पदस्थ इलाकों में उनका सम्मान था।
श्री रतनलाल असामाजिक तत्वों के प्रति कठोर व्यवहार करते बाकी गाँव वालों के प्रति
दयालु प्रवृति के व्यक्ति थे अपनी ड्यूटी के साथ साथ समाज में जरूरत मंद व्यक्तियों की आर्थिक रूप से मदद करते गरीब परिवार की कन्याओं की शादी करवाते , दलित वर्गों को यथायोग्य उनकी जरूरतों को पूरा करते इस कारण से सम्माननीय रहे हैं।
श्री रत्नलाल जी के दो बेटे और प्यारी सी बेटी लाडली सोनपरी जिसे हमेशा खुश देखना चाहते थे यदि कोई भी बेटी को कुछ कह देता तो उन्हें अच्छा नहीं लगता था ।
सोनपरी पापा की बेहद लाडली बेटी है प्यार से उसे सोनू कहकर पुकारते थे शादी हो जाने के बाद शहर से दूर चली गई और उसके पति शासकीय कर्मचारी के पद पर कार्यरत है।
एकलौती बेटी होने ससुराल पक्ष में सभी लोगों के बीच तालमेल बैठाने में थोड़ी सी परेशानी होती थी।
इस कारण पिताजी चिंतित रहते थे कुछ दिनों से स्वास्थ्य अचानक से खराब हो गया और सेवा निवृत्त होने के बाद बैकुंठ धाम को चले गए।
लाडली बेटी पापा की याद में आँसू बहाते हुए
हर पल सुनहरी यादों में ही खोये रहती थी उनके जज्बातों को याद करते रहती है देखते ही देखते एक साल बीत गया उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर सारे गाँव के लोगों का जन सैलाब उमड़ पड़ा था सभी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंच गए ।
उनकी नेकदिली आदर्श व्यक्तित्व की गाथाओं को याद करते हुए आँखों से अश्रु धारा बहा रहे थे मानो कह रहे हो कि हे ! महापुरूष फिर से वापस लौट कर हमारी मदद कर उद्धार करो ! !
रत्नलाल जी की कार्य प्रसिद्धि नामों से ही नही वरन उनके नेक काम अच्छे कर्मों के कारण ही पहचाना जाता था।
सोनपरी भी सारे दुःखों को भूलकर रिश्तों को मजबूती में बांधकर दूसरों की खुशियों में अपने आपको ढालते हुए जिम्मेदारियों का बोझ उठाते हुए नई दिशाओं में अग्रसर हो गई …! !
*यूँ तो दुनिया के सारे गम हँस कर झेल लेती हूँ
दर्द कैसे बयाँ करूँ आपके चले जाने के बाद में
हौसला जो बंधे रहता था ख्वाबों को सजाने का
हर शख्स का वजूद होती है बेटियाँ दिल में यही अरमान लिए एक नई पहचान के साथ …..! ! !
स्वरचित मौलिक रचना ??
***शशिकला व्यास ***
# भोपाल मध्यप्रदेश #