पापा आप बहुत याद आते हो।
पापा आप,
बहुत याद आते हो।
आपका अनुभव करता हुं,
पर छूने से ओझल हो जाते हो।।
आपका स्थान,
कोई ले सकता नही।
मेरे चेहरे को आप जैसा,
कोई पढ़ सकता नही।।
जाने कैसे आप,
पहले ही समझ जाते थे।
मेरे बताने से पूर्व ही,
सब जान जाते थे।।
पापा,
मैं विपत्ति से ना लड़ पाता हूं।
आपको,
हर पल याद करता हुं।।
मेरी आंखो से,
आंसू नीर बनके बहते है।
अब तन्हा,
चुपचाप हम रहते है।।
आपके जाने से,
मुझमें निडरता ना रही।
किसी परेशानी से,
लड़ने की क्षमता ना रही।।
आपकी प्रत्येक बात,
मुझे बहुत याद आती है।
मुझको खींचकर,
अतीत के झरोखों में ले जाती है।।
स्वर्ग सा अपना घर था,
देवता थे आप उसके।
हर आदत आपकी ले ली है,
फिर भी ना बन पाये आप जैसे।।
सांसे तो चल रहीं है,
पर इनमे रवानी ना बची है।
मुस्कुराए हुए अरसा हुआ,
जीवन में खुशियां ना रही हैं।।
आधे सफर में पापा,
क्यों मुझको छोड़कर गए हो।
जीवन मेरा,
क्यों यूं वीरान कर गए हो।।
एक आपके ही रिश्ते में,
कोई स्वार्थ ना दिखता था।
आपके होने से,
मैं हमेशा बचपन को जीता था।।
आपके होने से,
मुझमें सामर्थ रहता था।
आपके मुझपे विश्वास से,
मैं खुदको बलवान समझता था।।
अब तो विपत्तियों से,
मुझको डर लगता है।
पापा आपके बगैर,
जैसे मुझपे जग हंसता है।।
पापा आप,
बहुत याद आते हो।
आपका अनुभव करता हुं,
पर छूने से ओझल हो जाते हो।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ