“पानी”
“पानी”
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पानी तो पसरा है , सारा जहां;
पर,सबको पानी मिलता कहां।
सब मिलकर पानी को बचाइए,
हर प्यासे तक, पानी पहुचाइए।
पानी को जरूर , शुद्ध कीजिए;
शुद्ध पानी को ही सदा पीजिए।
पानी है , सबका जीवन दायी;
किस्मत से ही,सबने पानी पाई।
पानी में भी, कुछ जीवन होता;
पानी भी तो , एक दर्पण होता।
पानी में ही , कुछ अर्पण होता,
पानी में तो सब,समर्पण होता।
पानी तो, प्यास भी बुझाती है;
जीवन में , ये आस जगाती है।
पानी, जल भी तो कहलाती है;
पानी ही गंगाजल बन जाती है।
पानी ही , सबका आहार भी है;
पानी तो सबका व्यवहार भी है।
पानी से ही, मानव-वाणी भी है;
ये दुनिया तो, पानी-पानी ही है।
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…… ✍️पंकज “कर्ण”
……………कटिहार।।