#पानी#
पानी रे पानी,
क्या है तेरा स्वरूप?।।
कभी वर्षारानी तो
कभी जीवनदात्री माता कहलाये
तो कभी भाग्यविधाता।
श्रृष्टी मेंं सर्वश्रेष्ठ हो
तुम ही एक जीवनदाता।
गर्मियों की तपिश मेंं जब तन जलता,
तो रिमझिम बरस देती शीतलता।
चक लेते सारी धुप।
पानी रे पानी,
क्या है तेरा स्वरूप?।।
किसानों के लिए वरदान हो,
जीवन का अभिमान हो।
प्यासे के लिए प्राण हो।
धरती की शान हो।
भेदभाव करते नहीं
तुम किसी के साथ।
चाहे अमीर हो या गरीब,
सब पर रहता तुम्हारा हाथ।
पवित्रता के लिए हो श्रेष्ठ,
साक्षात भागीरथी
गंगे का हो रूप।
पानी रे पानी
क्या है तेरा स्वरूप?।।
तेरे आने से मंगलमय हो जाता जहाँ
मनोरम हो जाते दृश्य।
पेड़-पत्ते लगते लहलहाने।
नदी-नाले-झरने
सब लगते भरने।
कल-कल-कल,
झर-झर-झर की मधूर ध्वनि से
संगीतमय हो जाता समाँ।
धरती को चुमते,नहलाते,
हो जाते हो सागर मेंं विलीन।
मछलियां भी करने लगती चुहलबाजीयाँ।
नदी हो या बाँद।
प्रकृति की सुन्दरता में लगाती हो चार चाँद।
तुम बीन अधूरे से हैं,
मौसम की हर रूत।
पानी रे पानी,
क्या है तेरा स्वरूप?।।
लगता है इंसानों से खफ़ा हो आजकल।
कभी सुखाड में भी रूठे रहते
तो कभी अतिवृष्टि तो कभी ओलावृष्टी
तो कभी सुनामी बनकर
बन जाते हो जीवों के लिए काल।
कभी तुफान बनकर गुर्राते तो
कभी चंचल चपला बनकर कहर ढाते।
डगमग-डगमग धरा हिलती।
देख तेरा रूप विकराल।
डोलने लगता है महाकाल।
हाहाकार मच जाता जगत् में,
त्राहिमाम-त्राहिमाम की शोर से,
कोलाहल का दृश्य उत्पन्न हो जाता जगत् मेंं।
जब तुम प्रलयकारी बाढ़ बनके,
मचाते हो धरा में उत्पात।
भयग्रस्त इंसानों को हो रहा पश्चयाताप,
देख तेरा विध्वंसकारी रूप।
पानी रे पानी,
क्या है तेरा स्वरूप।।
अब तो इंसानों को जगना पडेगा।
धरती को बचाने में लगना पडेगा।
जिससे पानी का होता निर्माण,
उसका करना पडेगा गुणगान।
प्रकृति के क्षयन को करना पडेगा रोकथाम।
वृक्षों का करना पडेगा रोपन,
अविलम्ब रोकना पडेगा प्रकृति का दोहन।
वरना वो दिन दुर नहीं ,
जब इंसानों की धरती से जीवन हो जाएगा विलुप्त।।
पानी रे पानी,
क्या है तेरा स्वरूप?।।
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स्वरचित कवि, गीतकार,
संगीतकार व गायक -नागेन्द्र नाथ महतो
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