पानी को पानी की प्यास है
प्रेम का भी अजब सा ये एहसास है।
नदियों को क्यो समंदर की ही आस है।
होती दोनों की तासीर इक ही मगर।
देखिए पानी को पानी की प्यास है। ।
रोज सागर से मिलने को व्याकुल रहे।
गुनगुनाती नदी देखो पल पल कहे।
खारा है तू भले ही जहां के लिए ।
पर हमारे लिए तू बहुत खास है ।।
रोक पाएं न चट्टानें बह आऊँगी।
तेरी लहरों में आकर समा जाऊँगी।
बहते ही हम रहें यूँ प्रबल वेग से
हो मिलन का मधुर आज अहसास है
प्यास सबकी बुझाई सदा हित किया ।
मुझको लोगों ने अक्सर ही दूषित किया।
पाप धोते हुये थक चुकी हूँ मैं अब।
दे जगह बाँहो मे तुझसे अरदास है।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव